ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, जन्म तिथि के आधार पर विवाह का समय निर्धारित किया जाता है. ज्योतिष शास्त्र में जन्मकुंडली के सप्तम भाव से विवाह का विचार किया जाता है. कुंडली के सप्तम भाव में मौजूद ग्रह और सप्तमेश पर किस ग्रह की दृष्टि बन रही है, उसके आधार पर विवाह का समय पता चलता है.
कुंडली के सातवें भाव में सूर्य और राहु के रहने पर 27वें वर्ष से विवाह के योग बनते हैं. वहीं, मंगल के रहने पर 28वें वर्ष से शादी के योग बनते हैं. जबकि, शनि और केतु के रहने पर जातक की शादी 30 वर्ष के बाद होती है. कुंडली के सातवें भाव में शुभ ग्रह के रहने पर खूबसूरत जीवनसाथी मिलता है.
कुंडली पर कुछ शोधकार्य के मुताबिक, विवाह की अवस्था (18 से 28 के लगभग) में जब शनि और बृहस्पति दोनों सप्तम भाव और लग्न को देखते हों या गोचरवश इन भावों में आ जाएं तो उस अवधि में अवश्य विवाह होता है.
ज्योतिष के मुताबिक, अगर छब्बीस वर्ष की आयु में शनि का प्रभाव हो और शुक्र पर राहु का प्रभाव हो तो विवाह में दो वर्ष की देरी होती है. अगर चंद्रमा सप्तम भाव में हो और चंद्रमा पर मंगल या सूर्य का प्रभाव हो तो 26 वर्ष की आयु में विवाह की संभावना बनती है.
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, कुंडली में सप्तमेश पर अगर राहु या शनि ग्रह की कुदृष्टि पड़ी है तो ऐसी स्थिति में दो विवाह के योग है,
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