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Kundali details online

पाठकों को कुंडली पड़ने व् देखने में आसानी हो, इसलिए यह विवरण Kundali details online में दिया जा रहा है. इससे पाठकों को बहुत आसानी होगी कुंडली पढने व् समझने में, प्रत्येक पाठक कुंडली की बारीकियों को बड़ी ही आसानी से समझ पायेगा और जो हमारे नए पाठक हैं वो भो कुण्डली देखना सीख जायेंगे.

कुंडली में 12 राशि व् 9 गृह होते हैं और कुंडली में 12 घर (भाव) होते हैं. जिन्हें समझने के लिए आपको पहले घर (भाव) समझने होंगे, जो कि इस प्रकार से Kundali details online में बताए जा रहे हैं:

प्रथम घर (भाव), द्वितीय घर, तृतीय घर, चतुर्थ घर, पंचम घर, षष्टम घर, सप्तम घर, अष्टम घर, नवम घर, दशम घर, एकादश घर, द्वादश घर.

प्रथम घर :-

Kundali details online

द्वतीय घर :-

द्वतीय घर

तृतीय घर :-

तृतीय घर

चतुर्थ घर :-

चतुर्थ घर

पंचम घर :-

पंचम घर

षष्टम घर :-

षष्टम घर

सप्तम घर :-

सप्तम घर

अष्टम घर :-

अष्टम घर

नवम घर :-

नवम घर

दशम घर :-

दशम घर

एकादश घर :-

एकादश घर

द्वादश घर ;-

द्वादश घर

ये तो हो गए घर प्रथम, द्वतीय, तृतीय… द्वादश तक. अब बात करते हैं ग्रहों की जो की इस प्रकार से हैं:

सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, ब्रहस्पति, शुक, शनि, राहु, केतु. ये 9 गृह होते हैं.

इनमें सभी गृह जातक की कुंडली में उससे जुड़े हुए पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, शारीरिक, धार्मिक तत्थ्यों को दर्शाते हैं जो की इस प्रकार से है:

सूर्य : सूर्य जातक के राज्य व सत्ता का विवरण करता है.

चन्द्र : जातक की माता व् दादी का विवरण करता है.

मंगल : जातक के भाइयों व् मित्रों का विवरण करता है.

बुध : जातक की पुत्री, बहिन व् बुआ का विवरण करता है.

ब्रहस्पति : जातक के ब्राह्मण वर्ण, पिता व् दादा का विवरण करता है.

शुक्र : जातक की पत्नी का विवरण करता है.

शनि : जातक के चाचा व् ताऊ का विवरण करता है.

रहू : जातक के ससुराल व् ननिहाल का विवरण करता है.

केतु : जातक के पुत्रों का विवरण करता है.

ग्रहों में कुछ गृह नीच गृह, साथी गृह, धर्मी गृह, पापी गृह, बलवान गृह, संदिग्ध गृह, स्थायी गृह, मित्र गृह, स्त्री गृह, पुरुष गृह, नपुंसक गृह होते हैं. आगे इनका विस्तार से विवरण Kundali details online के माध्यम से दिया गया है:

नीच गृह :

सौ प्रतिशत बुरे फल देने वाले गृह ‘नीच’ गृह कहलाते हैं.

प्रत्येक गृह अपने सुनिश्चित घर में, स्थानों का स्वामी होता हो तो सदा अच्छा फल देगा. जैसे मंगल पहले और आठवें में तथा ब्रहस्पति नौवें व् बारहवे में, परन्तु जब कोई गृह ऐसे घर में बैठ हो जो उसके लिए उच्च माना गाया हो और उसका शातू गृह उसके सामने के घर में बैठ जाये तो वह अपना उचित फल नहीं देगा.

साथी गृह :

प्राचीन ज्योतिष में एक घर का अधिपति गृह किसी एनी घर में बैठे और उस घर का अधिपति गृह पहले घर में हो तो उसे ‘अन्योन्य योग’ कहते हैं. यह योग शुभ माना जाता है. जब गृह अपने सुनिश्चित घर को छोडकर किसी एनी गृह के घर में अदल-बदल कर ले तो वह साथी गृह कहलाता है.

उदाहरण: सूर्य पांचवे घर का स्वामी है. यदि वह दसवें घर में बैठ जाए और दसवें घर का स्वामी गृह शनि पांचवे घर में बैठ जाए तो वे दोनों साथी गृह कहलायेंगे. सभी साथी गृह शुभ फलदाता होते हैं.

धर्मी गृह :

चन्द्र माता का और ब्रहस्पति पिता तथा दादा का करक है. क्रूर-से-क्रूर व्यक्ति भी अपने माता-पिता का अहित करना नहीं चाहता. किसी प्रकार शनि-रहू, केतु माता के घर में बैठकर और पिता के घर (जो वृहस्पति का घर है ) में बैठकर कभी बुरा नहीं करेंगे. यह हो सकता है की कभी-कभी वृहस्पति (पिता ) के घर 8-12 में बुरा कर भी दें, किन्तु माता के घर में कभी बुरा नहीं करेंगे.

पापी गृह :

केंद्र यानी 1,4,7,10 घरों के स्वामी शुक्र, बुध, व्रह्स्पैत, चन्द्र आदि 3, 6, 8, 9 या 11 वें घर में बैठ जाएँ.

शनि यदि तीसरे और ग्यारहवें घर में बैठ जाये,

मंगल यदि 3, 9, 2 घर में बैठ जाये, तो वे पापी गृह कहलाते हैं.

बलवान गृह :

यदि कोई गृह अपनी निश्चित राशि में बैठा हो तो वह ‘बलवान गृह’ माना जाएगा. इनके भले या बुरे असर को रोकने की शक्ति किसी में नहीं हो.

उदहारण : सूर्य मेष राशि में, ब्रहस्पति वृषभ, सिंह, धनु एवं मीन राशि में तथा मंगल मिथुन और वृश्चिक राशि में बलवान गृह हैं.

संदिग्ध गृह : जब कोई गृह अपने निश्चित घर (राशि ) को छोडकर अन्य गृह के घर या राशि में बैठ जाए तो वह गृह ‘उच्छ्खंल गृह ‘ बन जाता है. गृह के बुरे असर से बचने के लिए उस गृह की संदिग्धता का फायदा उठाया जा सकता है.

स्थायी गृह : जो गृह अपने आपको किसी शत्रु गृह से न मिल रहा हो और न ही वह द्रष्ट या नीच हो अपितु अपने प्रभाव को किसी भी एनी गृह के साथ के बिना स्थिर रखता हो उस गृह को स्थायी गृह’ कहते हैं.

मित्र गृह : जो गृह जिस घर में बैठा हो उससे सातवें घर में बैठा गृह शत्रु गृह होने पर भी और गुप्त शत्रुता रखते हुए भी मित्र गृह कहलाता है.

स्त्री गृह :

चन्द्र : माता-नानी-सास, शुक्र : पत्नी, बुध : बहन, बुआ, साली, मौसी, ये स्त्री गृह हैं. इन सभी ग्रहों का प्रभाव रात को अधिक एवं दिन में कम दिखाई देता है. शनि का प्रभाव भी रात को ही दिखाई देता है.

पुरुष गृह :

ब्रहस्पति, सूर्य एवं मंगल ये तीनों पुरुष गृह हैं. इन ग्रहों का प्रभाव दिन में अधिक दिखाई देता है.

नपुंसक गृह :

बुध को नपुंसक गृह कहा जाता है.

रहू का प्रभाव रात में एवं केतु का प्रभाव दिन में अधिक दिखाई देता है.

राशि के निशित गृह :

मंगल मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी है.

शुक्र वृषभ और तुला राशि का स्वामी है.

बुध मिथुन और कन्या राशि का स्वामी है.

चन्द्र कर्क राशि का स्वामी हैं.

सूर्य सिंह राशि का स्वामी है.

ब्रह्स्पत्ति धनु एवं मीन राशि का स्वामी है.

शनि मकर एवं कुंभ राशि का स्वामी है.

ग्रहों के दिन व् घर :

सूर्य – रविवार – 5,

चन्द्र – सोमवार – 4,

मंगल – मंगलवार – 1,8,

बुध – बुधवार – 6,

ब्रहस्पति – ब्रहस्पतिवार – 7,

शनि – शनिवार – 10,

राहु – रविवार शाम सोमवार की सुबह – 12,